Tuesday, December 18, 2007

अच्छा अनुभव

मेरे बहुत पास मृत्यु
का सुवासदेह पर
उस का स्पर्श मधुर ही कहूँगा
उस का स्वर कानों में
भीतर

मगर प्राणों में
जीवन की लय तरंगित
और उद्दाम किनारों में
काम के बँधा प्रवाह नाम
का एक दृश्य सुबह का
एक दृश्य शाम का
दोनों में क्षितिज

पर सूरज की लाली दोनों में
धरती पर छाया घनी
और लम्बी इमारतों की
वृक्षों की देहों की काली
दोनों में कतारें पंछियों
की चुप और चहकती हुई

दोनों में राशीयाँ फूलों की
कम-ज्यादा महकती हुई
दोनों मेंएक तरह की शान्ति
एक तरह का आवेग
आँखें बन्द प्राण खुले हुए

अस्पष्ट मगर धुले हुऐ
कितने आमन्त्रण
बाहर के भीतर के
कितने अदम्य इरादे
कितने उलझे कितने सादे
अच्छा अनुभव है
मृत्यु मानो
हाहाकार नहीं है
कलरव है!

- भवानीप्रसाद मिश्र

8 comments:

Abhi said...

Aapke profile aur Puja ji ke blog par kavita ka shrot dhoondh lane ki khoji pravritti ne kafi prabhavitkiya. Swagat mere blog par bhi.

अनुपम अग्रवाल said...

achhe sahitya se parichay karaate hain aap.
dhanyawaad

KK Yadav said...

आपके ब्लॉग पर बड़ी खूबसूरती से विचार व्यक्त किये गए हैं, पढ़कर आनंद का अनुभव हुआ. कभी मेरे शब्द-सृजन (www.kkyadav.blogspot.com)पर भी झाँकें !!

Dev said...

First of all Wish u Very Happy New Year...

shelley said...

bahut dino k baad mishr ji ki yaad kara di aapne.

daanish said...

"aspasht lekin dhule hue kitne aamantran..."
samriddh sahityik privesh ka poorn prabhaav spasht jhalak raha hai aapki is kriti meiN....
ek suruchi.poorn geetatmak rachna ke liye badhaaee svikaareiN .
---MUFLIS---

Amit Kumar Yadav said...

''स्वामी विवेकानंद जयंती'' और ''युवा दिवस'' पर ''युवा'' की तरफ से आप सभी शुभचिंतकों को बधाई. बस यूँ ही लेखनी को धार देकर अपनी रचनाशीलता में अभिवृद्धि करते रहें.

Amit Kumar Yadav said...

आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!