मेरे बहुत पास मृत्यु
का सुवासदेह पर
उस का स्पर्श मधुर ही कहूँगा
उस का स्वर कानों में
भीतर
मगर प्राणों में
जीवन की लय तरंगित
और उद्दाम किनारों में
काम के बँधा प्रवाह नाम
का एक दृश्य सुबह का
एक दृश्य शाम का
दोनों में क्षितिज
पर सूरज की लाली दोनों में
धरती पर छाया घनी
और लम्बी इमारतों की
वृक्षों की देहों की काली
दोनों में कतारें पंछियों
की चुप और चहकती हुई
दोनों में राशीयाँ फूलों की
कम-ज्यादा महकती हुई
दोनों मेंएक तरह की शान्ति
एक तरह का आवेग
आँखें बन्द प्राण खुले हुए
अस्पष्ट मगर धुले हुऐ
कितने आमन्त्रण
बाहर के भीतर के
कितने अदम्य इरादे
कितने उलझे कितने सादे
अच्छा अनुभव है
मृत्यु मानो
हाहाकार नहीं है
कलरव है!
- भवानीप्रसाद मिश्र
Tuesday, December 18, 2007
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8 comments:
Aapke profile aur Puja ji ke blog par kavita ka shrot dhoondh lane ki khoji pravritti ne kafi prabhavitkiya. Swagat mere blog par bhi.
achhe sahitya se parichay karaate hain aap.
dhanyawaad
आपके ब्लॉग पर बड़ी खूबसूरती से विचार व्यक्त किये गए हैं, पढ़कर आनंद का अनुभव हुआ. कभी मेरे शब्द-सृजन (www.kkyadav.blogspot.com)पर भी झाँकें !!
First of all Wish u Very Happy New Year...
bahut dino k baad mishr ji ki yaad kara di aapne.
"aspasht lekin dhule hue kitne aamantran..."
samriddh sahityik privesh ka poorn prabhaav spasht jhalak raha hai aapki is kriti meiN....
ek suruchi.poorn geetatmak rachna ke liye badhaaee svikaareiN .
---MUFLIS---
''स्वामी विवेकानंद जयंती'' और ''युवा दिवस'' पर ''युवा'' की तरफ से आप सभी शुभचिंतकों को बधाई. बस यूँ ही लेखनी को धार देकर अपनी रचनाशीलता में अभिवृद्धि करते रहें.
आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!
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