मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ,
एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा।
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ,
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा।
मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा,
लाल होकर आँख भी दुखने लगी।
मूँठ देने लोग कपड़े की लगे,
ऐंठ बेचारी दबे पॉंवों भागने लगी।
जब किसी ढब से निकल तिनका गया,
तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए।
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा,
एक तिनका है बहुत तेरे लिए।
अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
8 comments:
ज़िन्दगी की हकीक़त बयाँ करती एक रचना
जब किसी ढब से निकल तिनका गया,
तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए।
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा,
एक तिनका है बहुत तेरे लिए।
Mayank ji kitani gahri bat kah di hai Hariodh ji ne in paktion k madhyam se...!!
जब किसी ढब से निकल तिनका गया,
तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए।
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा,
एक तिनका है बहुत तेरे लिए।
बढ़िया और रोचक रचना । ऐसा हर इंसान की फितरत होता है । हकीकत को दिखलाता यह लेख शुक्रिया
आदरणीय हिंदी ब्लोगेर्स को होली की शुभकामनाएं और साथ में होली और हास्य
धन्यवाद.
सुप्रसिद्ध साहित्यकारों की रचनाएँ
पढ़वाने के लिए धन्यवाद।
मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ,
एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा।
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ,
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा।
Itnee sundar rachanase ru-b-ru karaya! Wah!
aaj jis kavi ki rachna aapne hum tak pahunchayi...bachpan ki kuch yaaden..taza ho gayi! :)
मयंक जी...आपतक नास्तिकों के ब्लॉग से पहुँची..फिर वहाँ से यहाँ...हर एक रचना देखकर जुबाँ से बस एक लफ़्ज़ निकलता है.."वाह"
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